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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


परिवर्तन

४)
यद्यपि ठाकुर साहब के घर उनके कोई भी रिश्तेदार न आते थे किन्तु फिर भी ठाकुर साहब कभी कभी अपने रिश्तेदारों के यहाँ हो आया करते थे । ठाकुर साहब की बुआ की लड़की चम्पा का विवाह था। एक मामूली छपा हुआ निमंत्रण पत्र पाकर ही वे विवाह में जाने को तैयार हो गये । चम्पा ने जब सुना कि ठाकुर साहब आए हैं तो उसने उन्हें अन्दर बुलवा भेजा । चम्पा को हेतसिंह के जेल जाने से बड़ा कष्ट हो ही रहा था। वह इस विषय में ठाकुर साहब से कुछ पूछना चाहती थी ।

चम्पा के निडर स्वभाव और उसकी स्पष्ट-वादिता से ठाकुरसाहब अच्छी तरह परिचित थे। पहिले तो वे चम्पा के सामने जाने में कुछ झिझके फिर आखिर में उन्हें जाना ही पड़ा । न जाने क्यों वे चम्पा का लिहाज़ भी करते थे । साधारण कुशल प्रश्न के पश्चात चम्पा ने उनसे हेतसिंह के विषय में पूँछा । ठाकुर साहब ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा-"क्या करें भूल तो हो ही गई ।"
"दादा, अब आप इन आदतों को छोड़ दें तो अच्छा हो ।"
कुछ अनभिज्ञता प्रकट करते हुए ठाकुर साहब बोले-कौन सी आदतें बेटी !
चम्पा ने मार्मिक दृष्टि से उनकी ओर देखा और चुप हो गई। ठाकुर साहब कुछ झेंप से गए बोले- बेटी ! में कुछ नहीं करता, तुझे विश्वास न हो तो चल कर एक बार अपनी आंखों से देख ले । वैसे तो लोग न जाने कितनी झूठी खबरें उड़ाया करेंगे पर तुझे तो विश्वास न करना चाहिए ।

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चम्पा का विवाह हो गया । चम्पा ससुराल गई और ठाकुर साहब आए अपने घर ।
घर आने पर भी चम्पा की वह मार्मिक चोट उनके हृदय पर रह रह कर आघात करती ही रही । बहुत बार उन्होंने सोचा कि मैं इन आदतों को क्यों न छोड़ दूं ? जीवन में न जाने कितने पाप किए हैं। अब उनका प्रायश्चित भी तो करना ही चाहिए । अब नरेन्द्र (उनका लड़का ) भी समझदार हो गया है उसके सिर पर घर द्वार छोड़कर क्यों न कुछ दिन तक पवित्र काशी में जाकर गंगा किनारे भगवद् भजन करूँ ? आधी उम्र तो जा ही चुकी है। क्या जीवन भर यही करता रहूँगा ? मेरे इन आचरणों का प्रभाव नरेन्द्र पर भी तो पड़ सकता है। किन्तु पानी के बुलबुलों के समान यह विचार उनके दिमाग़ में क्षण भर के लिए आते और चले जाते । उनका कार्यक्रम ज्यों का त्यों जारी था।

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